
साथ ही अतिरिक्त उपायुक्तों की बजाय जिला परिषदों के अध्यक्ष ही भविष्य में जिला ग्रामीण विकास एजेंसी (डीआरडीए) केप्रमुख होंगे। इससे पंचायती राज संस्थाओं के कामकाज में नौकरशाही की मनमानी पर प्रभावी रोक लग सकेगी।
शनिवार अपरान्ह दिल्ली पहुंचते ही मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ओर से इस आशय की घोषणाएं अप्रत्याशित ढंग से की गईं। उन्होंने कहा कि ग्रामीण विकास निधि, गलियों के फुटपाथ, वैट पर सरचार्ज, मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति निर्मल बस्ती योजना, विशेष विकास कार्यो, राज्य वित्त आयोग निधि तथा केंद्रीय वित्त आयोग निधि जैसी सभी योजनाओं की निधियों तथा अनुदानों की राशि अब ग्राम पंचायतों को आर जी टी एस प्रणाली द्वारा सीधे उनके बैंक खातों में भेजी जाएगी।
अबतक यह राशि जिला उपायुक्तों व अतिरिक्त उपायुक्तों के माध्यम से भेजी जाती थी। पहले, पंचायतों को केवल पाँच लाख रुपये तक के कार्याे की प्रशासनिक स्वीकृति का अधिकार था। इसके लिए कोई सीमा नहीं तय की गई है।
उन्होंने बताया कि जिला परिषद एवं पंचायत समितियों के सदस्यों को अपने- अपने वार्डो में चल रहे विकास कार्यो का निरीक्षण का अधिकार होगा तथा इंजीनियरिंग विंग पंचायती संस्थाओं के लिए कार्य करेगा। उन्होंने बताया कि ग्राम पंचायतों के पास यह फैसला करने का अधिकार होगा कि वे 10 लाख रुपए तक के विकास कार्यो को स्वयं या स्थानीय ठेकेदार द्वारा अथवा पंचायती राज इंजीनियरिंग विंग से करवाएं, जबकि इससे अधिक राशि के कार्यों को वे पंचायती राज इंजीनियरिंग विंग अथवा विंग द्वारा आयोजित निविदा प्रक्रिया से ही करवा पाएंगे।
हुड्डा ने स्पष्ट किया कि पंचायत के फैसलों पर केवल सरपंच का एकाधिकार नहीं होगा तथा ग्राम पंचों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी। पचायतों के बैंक खातों को सरपंच एवं ग्राम सचिव संयुक्त रूप से संचालित करेंगे। किसी हेराफेरी अथवा दुरुपयोग की शिकायत होने पर जिला उपायुक्त को सरपंच, ग्राम सचिव, खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी/सामाजिक शिक्षा एवं पंचायत अधिकारी में से किन्हीं दो को बैंक खाता संचालित करने के लिए अधिकृत करने का अधिकार होगा
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