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Dabwali news

सात निर्दलियों ने हासिल की जीत
हरियाणा राज्य की 12वीं विधानसभा में इस बार सात निर्दलीय विधायक जीतकर आए हैं। पिछली बार के चुनाव में 11 आजाद विधायकों ने जीत हासिल की थी, मगर इस बार निर्दलीय विधायकों की संख्या घटकर सात रह गई है। 67 में सिर्फ नौ महिलाएं ही चुनाव जीतीं चंडीगढ़ : हरियाणा की 12वीं विधानसभा चुनाव में 67 महिलाएं चुनावी समर में मैदान में उतरी थीं, जिनमें मात्र नौ ही चुनाव जीतने में सफल हुई हैं। इनमें कांग्रेस की छह, इनेलो की दो और एक भाजपा की है। हरियाणा में अकालियों का खाता खुला चंडीगढ़ : अकाली दल ने पहली बार पंजाब के बाहर चुनाव जीत कर अपना आधार फैलने के सबूत दिए हैं। यूं तो पार्टी पहले भी दिल्ली आदि राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ती रही है मगर उसे जीत नसीब हुई इस बार हरियाणा के विधानसभा चुनाव में। अकाली प्रत्याशी चरणजीत सिंह ने कालियांवाली सीट जीत कर इनेलो के हाथ मजबूत किए हैं जिसने अकाली दल को राज्य में दो सीटें दी थीं। जीत के बावजूद हजकां प्रत्याशी की जमानत जब्त करनाल : जीत हासिल करने के बावजूद असंध विधानसभा क्षेत्र से हजकां प्रत्याशी पंडित जिलेराम शर्मा अपनी जमानत नहीं बचा पाए। उन्हें जमानत बचाने के लिए निर्धारित वोट नहीं मिले। इस क्षेत्र में कुल एक लाख 28 हजार 218 मत पड़े। प्रत्येक प्रत्याशी को जमानत बचाने के लिए कुल मतों का 1/6 हासिल करना होता है। इस नियम पर जिलेराम शर्मा समेत कोई भी प्रत्याशी खरा नहीं उतरा। जिलेराम को 20 हजार 266 मत मिले हैं।

कुछ यूं दी गई बधाइयां ..
चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जोश भर गया, लिहाजा उन्होंने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को कुछ इस अंदाजा में बधाइयां दीं।


मेहमानों को सड़कें खूबसूरत दिखाने की तैयारी
विदेशी मेहमानों को सड़कें किस तरह की दिखें, इसके लिए लंबी माथापच्ची के बाद सौंदर्यीकरण की योजना पर जमीन पर उतारने की कवायद शुरू हो गई। खेलों के लिए सड़कों के सौंदर्यीकरण योजना का दिल्ली के पहले प्रोजक्ट का राष्ट्रीय राजमार्ग-24 पर सैंपल तैयार किया गया है। इसमें दस से अधिक प्रजाति के पौधे, बेल व पेड़ लगाए गए हैं। योजना इस प्रकार तैयार की गई है कि इस हरियाली के बाद पूरा इलाका बदला-बदला नजर आएगा। योजना के तहत जो पौधे लगाए गए हैं, वे सभी देशी हंै। लोक निर्माण विभाग के सचिव के.के. शर्मा ने बुधवार शाम दौरा कर गाजियाबाद से निजामुद्दीन की ओर आने वाले मार्ग पर बनाए गए सैंपल को ओके कर दिया है। इसे शीघ्र ही दिल्ली के मुख्य सचिव राकेश मेहता और मुख्यमंत्री शीला को भी दिखाया जाएगा। सरकार से स्वीकृति मिल जाती है तो इसी के अनुरूप इस मार्ग को सुंदर बनाने का काम शुरू कर दिया जाएगा। कामनवेल्थ गेम्स के चलते जो रूट खिलाडि़यों को लाने-ले जाने के निर्धारित किए गए हैं, उन्हें सुंदर बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसी के तहत यमुना खादर में स्थित खेल गांव से यमुना स्पो‌र्ट्स कांप्लैक्स तक के रूट के सौंदर्यीकरण करने के लिए एनएच-24 पर मदर डेयरी पुलिया के पास संजय झील के सामने दोनों मार्गो पर सौ-सौ मीटर के सैंपल बनाए गए हैं। इसके अलावा मार्ग के सेंट्रल वर्ज को विकसित किया जा रहा है। इस पर पिछले 10 दिन से काम चल रहा है। सैंपल दो प्रकार के बनाए गए हैं। इसमें से गाजियाबाद की ओर से निजामुद्दीन की ओर जाने वाले मार्ग पर बने सैंपल को लोक निर्माण विभाग ने स्वीकृति दे दी है। इसमें हाइकस बैंजामीना, हाइकस ब्लैक आई व हाईकस रिजलाल्ट आदि के पेड-पौधे लगाए गए हैं। वे पेड़ लगाए गए हैं, जो छह से सात फुट तक ऊंचे हो जाते हैं। बीच-बीच में लाल फूल देने वाला हिमेलिया तथा पीला बड़ा फूल देने वाला टिकोमा लगाया गया है। यूनीपैंसिस व बैंगू (बांस) के पेड़ लगाए गए हैं। बार्डर के लिए इनर्मी लगाई गई है। जमीन को सुंदर बनाने के लाल घास लगाई गई है। इस रोड से जुड़ने वाले दूसरे मार्ग रोड संख्या-56 को गाजीपुर लालबत्ती से आनंद विहार बस अड्डा जाने वाले मार्ग का भी सौंदर्यीकरण किया जाएगा। इसके लिए एक सप्ताह बाद प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इस रोड के लिए अलग तरह के पौधे लगाए जाएंगे।


हुड्डा की राह में खड़ी हुई सैलजा और किरण चौधरी
हरियाणा में कांग्रेस भले ही बहुमत से कुछ पीछे रह गई हो, लेकिन पार्टी के कई नेता मुख्यमंत्री पद की दौड़ में आगे निकलने कोशिश में जुट गए हैं। चुनाव नतीजों की घोषणा के साथ ही गुरुवार शाम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और किरण चौधरी ने अपने-अपने तर्को के साथ पार्टी हाईकमान के यहां हाजिरी लगाई। राज्य में पार्टी के खराब प्रदर्शन का ठीकरा केंद्रीय नेताओं ने प्रदेश नेतृत्व के सिर फोड़ा है। इसके लिए उसके अति उत्साह को जिम्मेदार बताया गया है। कांग्रेस को उम्मीद से कमजोर चुनाव नतीजों के चलते जहां निर्दलीय व दूसरी पार्टी के समर्थन की तलब है, वहीं उसे हुड्डा के नाम पर सहमति न बनने की भी आशंका है। खासकर हजकां से समर्थन की नौबत आने पर। केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा और बंसीलाल की बहू किरण चौधरी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं। सोनिया गांधी से मुलाकात करने गए भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब10 जनपथ से बाहर निकले, ठीक उसी समय सैलजा सोनिया से मिलने गईं। उसके थोड़ी देर बाद किरण चौधरी भी पहुंच गईं। पार्टी महासचिव बीके हरिप्रसाद ने राज्य में वहां के नेतृत्व के अति उत्साह को कोसा। उनका कहना है कि हरियाणा के चुनाव नतीजे पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। हरिप्रसाद ने कहा कि निर्दलीय व हजकां जैसी पार्टियों के पास समर्थन के लिए जाना ही पड़ेगा। ऐसे में उनकी ओर से आई शर्त को नजरअंदाज करना भी संभव नहीं होगा। लोकसभा चुनाव में 10 में नौ सीटें जीतने के बाद मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने समय से छह महीने पहले चुनाव कराने के प्रस्ताव पर पार्टी हाईकमान से मुहर लगवा ली। टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार के तौर तरीके की पूरी छूट हुड्डा को मिली थी। चुनाव की कमान भी उनके हाथ में ही थी। प्रदेश कांग्रेस के दूसरे धड़े के नेताओं को नजरअंदाज किया गया। यही वजह थी कि पूरे चुनाव के दौरान ये नेता खिंचे-खिंचे रहे। जाहिर तौर पर अब हुड्डा चौतरफा निशाने पर हैं। प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं में चौधरी विरेंद्र सिंह चुनाव हार गए हैं, जो मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में सबसे आगे थे।


Elections is causing direct impact on routine functioning of Haryana State.
Sirsa: Elections is causing direct impact on routine functioning of Haryana State.The latest report from Sirsa says that university authorities have stayed celebration of the birth anniversary of Shaheed Bhagat Singh on the university campus by students citing violation of the model code of conduct, and asking to organize this event after haryana assembly elections.It is to mention that,All-India Students Federation (AISF) had proponed birth anniversary of Shaheed Bhagat Singh function of September 28, to September 24 due to the Dussehra festival and invited Vice- Chancellor KC Bhardwaj as the chief guest for their programme, named “Ek Sham, Bhagat Singh ke Naam”.


..तो धम्मपद नहीं, गांधी का स्वराज चाहिए
मुझे यदि धम्मपद और गांधी के स्वराज में से किसी एक को चुनने का विकल्प दिया जाए तो मैं नि:संकोच स्वराज को चुनुंगा। तमाम समस्याओं का हल गांधी के दर्शन में ही है..आवश्यकता है इसे आत्मसात करने की..। यह कहना है बौद्ध संत व दलाईलामा के प्रमुख सहयोगी और तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री सामदोंग रिंपोछे का जो इन दिनों गांधी कथा के प्रचार का जिम्मा उठाए हुए हैं। उनके सरकारी कार्यालय में दैनिक जागरण की उनसे बातचीत तो गांधी कथा पर शुरू हुई, लेकिन संदर्भ स्वराज और अहिंसा के मर्म तक भी पहुंचे। अहिंसा के मूल सिद्धांत पर आधारित बौद्ध धर्म व उसके प्रमुख अनुयायी होने के बावजूद महात्मा गांधी एवं उनके दर्शन के प्रचार की आवश्यकता को स्पष्ट करते हुए उनका कहना है, बुद्ध की अहिंसा धर्म और नीति तक सीमित होकर रह गई। श्रीलंका, कंबोडिया, थाईलैंड एवं बर्मा जैसे बौद्ध राष्ट्र पुलिस और सेना के बिना शासन की कल्पना तक नहीं कर पाए। दूसरी ओर गांधी ने उसे जीवन के हर पहलू, यहां तक कि राजनीति तक में उतार दिया। भारत की आजादी की लड़ाई, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की लड़ाई उन्होंने अहिंसा के बल पर लड़ी और सफल रहे। वही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सेना और पुलिसविहीन राष्ट्र व स्वराज की कल्पना की। रिंपाछे ने बताया कि बुद्ध और महावीर जैसे महात्माओं के कारण भारत समेत पूरे विश्व में करीब ढाई हजार साल से अहिंसा का उपदेश सुनने को मिल रहा है, लेकिन दुर्भाग्यवश आम लोगों के दैनिक जीवन का हिस्सा नहीं बन पाया। इसे सिर्फ आत्मिक उत्थान व धर्म का तरीका भर माना गया है। इसे दैनिक जीवन में उतारने और इसके माध्यम से अपनी बात मनवाने की ताकत बनाने का श्रेय पूरी तरह से महात्मा गांधी को जाता है। यह दीगर है कि आजादी के बाद उनके सिद्धांतों पर अमल नहीं हो पाया, लेकिन मेरा आज भी दृढ़ विश्वास है कि बिना सेना, पुलिस एवं बल प्रयोग के शासन संभव है। दलाईलामा के सहयोगी रिंपोछे का मानना है कि गांधी के स्वराज को ईमानदारी से अपनाएं तो विश्वव्यापी आतंकवाद, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी एवं मंदी जैसी समस्या का हल इसी में है। यदि पूरा मानव समाज अहिंसा के सिद्धांत का दृढ़ता से पालन करे और अपनी समस्याओं का हल अहिंसक तरीके से तलाश करे तो स्वत: ही हिंसा, आतंकवाद और लड़ाई-झगड़े खत्म हो जाएंगे। इसी तरह ग्राम स्वराज के सिद्धांत पर चलते हुए वस्तुओं का उतना ही ग्रामीण स्तर पर उत्पादन और संग्रह हो जितनी आवश्यकता है तो मंदी नहीं रहेगी। मौजूदा स्थिति को घातक बताते हुए उनका कहना है कि यह वैश्वीकरण और मशीनीकरण का दौर है। कारखानों में बेतहाशा उत्पादन, अधिक से अधिक वस्तुओं का संग्रह, मुनाफाखोरी, और अपनी आवश्यकता देखे बिना सिर्फ दूसरों को देखकर अस्त्र-शस्त्र समेत तमाम विलासता के सामान खरीदने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। हर आदमी, समाज और राष्ट्र चाहे-अनचाहे इस दौड़ में है। इससे उबरने का एकमात्र रास्ता संस्कारों में परिवर्तन है जो गांधी दर्शन में है।
Cricketer Yuvraj Singh's father loses election
Dabwali, Oct 22 : Former Indian cricketer Yograj Singh, who is the father of cricket star Yuvraj Singh, Thursday lost his maiden election from Haryana's Panchkula assembly seat.Yograj, who was fielded by the Indian National Lok Dal (INLD), was defeated by Congress candidate Devender Kumar Bansal from the Panchkula seat, adjoining state capital Chandigarh, by over 12,250 votes. Yuvraj had not come to campaign for his father, who had put up posters of his celebrity son. At one point Yograj was trailing at fourth place among main candidates but recovered later to end runner-up in the election. Yograj had played one test match and six one day internationals for India against Australia in 1980 during a trip Down-under.


Chautala defeats finance minister by 621 votes
Dabwali, Indian National Lok Dal (INLD) president and former Haryana chief minister Om Prakash Chautala Thursday pulled off a tough win Thursday when he defeated state Finance Minister Birender Singh in the Uchana Kalan assembly seat.Chautala defeated Singh by a margin of just 621 votes on this seat in what is perhaps the biggest contest among all 90 assembly seats in the state. Birender Singh, a powerful Jat community leader from Jind district, was aspiring to be chief minister if the Congress returned to power. Chautala, who contested two assembly seats, was leading from the Ellenabad seat in Sirsa district by over 16,000 votes and was expected to win that comfortably as well.


Akali Dal wins its first assembly seat in Haryana
Dabwali,: Punjab's ruling Shiromani Akali Dal Thursday scored its first electoral win in Haryana with its candidate Charanjeet Singh getting elected from the Kalanwali (reserved) assembly seat.Charanjeet Singh defeated Sushil Kumar Indora of the Congress by over 12,500 votes. This is the first electoral victory for the Akali Dal in Haryana. The Akalis had an electoral alliance with the Indian National Lok Dal (INLD) in the state in this election even though its candidates fought under the Akali Dal symbol. Indora had left the August this year to join the ruling Congress. The only other Akali Dal candidate, Charanjeet Kaur, however, lost the Ambala city assembly seat to Congress candidate and former union minister Venod Sharma by over 35,500 votes.

खुलेआम उल्लंघन, फिर भी नहीं कोई दंड
ऐसा लगता है कि गलती पर सजा की हकदार सिर्फ जनता ही होती है, सरकारी अफसर नहीं। कम से कम सूचना के अधिकार कानून के मामले में तो यह सौ फीसदी सच है। देशभर में जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) के तौर पर काम कर रहे सरकारी अफसरों की सौ में से 98 गलतियां चुपचाप माफ कर दी जाती हैं। इनके खिलाफ सुनवाई करने वाले सूचना आयुक्त इन्हें सिर्फ अपनी गलती सुधार लेने भर को कहते हैं। यह खुलासा सूचना आयुक्तों के फैसलों के एक व्यापक अध्ययन में हुआ है। अध्ययन के मुताबिक केंद्र और राज्यों के मौजूदा सूचना आयुक्त सरकारी अफसरों से इस कानून का पालन करवा पाने में असरदार साबित नहीं हो रहे। इसकी वजह भी ये आयुक्त खुद ही हैं। दरअसल, लगभग सभी मामलों में ये उल्लंघन करने वालों को कोई सजा ही नहीं देते। जन सूचना अधिकारी के तौर पर काम कर रहा अफसर अगर तीस दिन के अंदर मांगी गई सूचना नहीं देता तो कानूनन उस पर हर दिन की देरी के लिए जुर्माना लगना चाहिए। लेकिन जिन मामलों में सूचना आयुक्त यह मान भी लेते हैं कि आवेदनकर्ता सही है और उसे सूचना उपलब्ध करवाई जानी चाहिए, उनमें भी वो उल्लंघन करने वाले अधिकारी को दंडित नहीं करते। देशभर के सूचना आयुक्तों के कामकाज का यह अध्ययन करवाने वाले पब्लिक काज रिसर्च फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी और मैगसेसे पुरस्कार विजेता अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि आयुक्त जब यह मान लेते हैं कि आवेदन करने वाला सही है और उसे सूचना मिलनी चाहिए तो फिर जो गलत है, उसे सजा क्यों नहीं मिलती जबकि कानून इसके लिए साफ हिदायत देता है। आयुक्तों के इस लचर रवैये की वजह से ही उनके फैसलों के बाद भी अफसर उसे गंभीरता से नहीं लेते। हालांकि यह अध्ययन रिटायर सरकारी अफसरों को लेकर आपकी धारणा काफी हद तक बदल सकता है। इसके मुताबिक रिटायर्ड अधिकारी सूचना आयुक्त बनने के बाद जरूरी नहीं कि अफसर बिरादरी को बचाने के लिए ही काम करे। अध्ययन में पता चला है कि सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले आयुक्त भी रिटायर्ड नौकरशाह हैं और सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाले भी इसी बिरादरी के हैं। छह हजार आरटीआई अपीलकर्ताओं से मिले आंकड़ों के मुताबिक जनसंतोष के मामले में अव्वल रहने वाले केरल के आयुक्त पी फजलुद्दीन और केके मिश्रा भी शीर्षस्थ सरकारी अधिकारी रहे हैं और सबसे कमतर साबित होने वाले सीडी आरा और नवीन कुमार भी।

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